जय श्री राम
जय श्री राम
' राम ' नाम के चरणामृत का
जिसने भी है पान किया।
सतत् यश कीर्ति सुकृत का
अक्षय अमृत वरदान लिया।।
बनाया कालजयी बजरंग को
नाम तुलसी का अमर किया।
कलयुग की तम काया को
भक्ति का निर्मल आधार दिया।।
गर्दिश में हो गए सितारे
अस्तित्व राम का जो नहीं माना।
बिन पतवार नौका के सहारे
चाहा भवसागर के पार जाना ।।
' राम ' बिलग नहीं " श्री " से
"श्री राम" ही उनका नाम है ।
विस्मृत होना कभी स्मृति से
अवध ही " श्री " का धाम है ।।
महसूस करें उनकी सुषमा को
अवधपुरी के कण-कण में ।
प्रतिबिंबित कर ना सके उपमा को
व्याप्त चिर वैभव तृण-तृण में ।।
धन्य हुई ये भारत भूमि
श्री राम का भवन बना कर ।
धन्य हुई जन " कमल " उर्मि
रामराज्य की झलक दिखा कर ।।
एक सूत्र में बंधे आज हम
एक ही अपना नारा है ।
हो रहा उन्नत " राष्ट्र धर्म "
जनकल्याण ही ध्येय हमारा है ।।
" सबका साथ, सबका विकास " हो
" वसुधैव कुटुम्बकम " सारा है ।
पुनः विश्व गुरु बनने का प्रयास हो
यह " रामभक्त मोदी " का इशारा है ।।