जवाब की उलझन
जवाब की उलझन
उस चांद को देखकर हर रोज़
एक सवाल ज़हन में आता है
गुमसुम सी उस मुस्कुराहट में
धुंधला सा एक जवाब भी नजर आता है।
कितनी ख़ामोशी से इन निगाहों को
अपने लफजों पर एतबार आता है
मगर कुछ दूर जाकर ये
जवाब एक बार फिर उलझ सा जाता है।
वो जवाब जो आज भी
बेबस लम्हों को ज़िंदा कर आता है
यादों में छिपाए ज़ख्मों को
फिर नरम सा कर आता है।
वो जवाब जिसे रिश्तों के
दरमियान हुए सन्नाटे का इल्म है
ख्वाबों के टूट जाने पर भी
जिसे एक उम्मीद का हिल्म है।
कैसे दो दिलों में बेशुमार प्यार आता है
फिर कुछ कदम चल निगाहों को
ज़िन्दगी भर का साथ नजर आता है
सपने देख खुशी के
एक नई दुनिया के होने का
एहसास गुजर सा जाता है।
बस एक दूसरे के होने का ही
एहसास नजर आता है
मगर कुछ राह चलकर क्यों
बिछड़ने का समय आता है।
दो दिल जो इतने करीब थे
उनको भी न जाने कैसे अब
अनदेखा करना आ जाता है
एक दूसरे के बिना अकेले में
मुस्कुराना आ जाता है।
ये जवाब कई बार
मेरे लफ़्ज़ों तक आता है
मगर कुछ दूर जाकर
ये एक बार फिर उलझ सा जाता है।