" जटाधर के जटा का नीर..."
" जटाधर के जटा का नीर..."
जटाधर के जटा से जब नीर बहा, नदी नहर संग जग जलमय हुआ।
घनघोर - घटा बादल संग धरती पर जीवन का अवतरण हुआ ।।
दुल्हन बनी धरती उस दिन, जिस दिन से जटा नीर का स्पर्श हुआ ।
झूमने लगी प्रकृति चारों दिशाओं में, जब जीवों का उद्धार हुआ ।।
प्रलय की जब जग में बारी आई, जल बिन जग में हाहाकार हुआ ।
मुख मौन जग तमाशा देखता रहा, जब ज़मीं का जल बर्बाद हुआ।।
टूट गई रिश्ता ज़मीं और आसमां के बीच, जब ज़मीं बंजर हुई ।
तरस गये लोग जल के लिए, जब मानव ही मानव का क़ातिल हुआ।।
शर्मसार हुई मानवता जग में जब बादल बिन बारिश ग़मगीन हुआ ।
बिखर गई दुल्हन सी प्रकृति, जब जग में जल का चीरहरण हुआ ।।
Dr Gopal Sahu