ज़श्न–ए–बहार
ज़श्न–ए–बहार
कितने मख्सूस इकट्ठा हुए है ज़श्न–ए–बहार के लिए
गाएगी उनकी ज़िंदगी भी फसल–ए–बहार के लिए।
अलग–अलग रंग है जैसे इंद्रधनुष कोई रंग लिए
मुझे भी इस महफ़िल में जाना हुआ ज़श्न के लिए।
कोई वाबस्ता मेरा किसी से कभी मुब्तला न हो
मेरे दिल में लहर खुशी की होगी सदा–बहार के लिए।
हम यूं ही चहकते, मुस्कुराते रहे अहद–ए–वफ़ा में
कोई झगड़ा न हो एक दूजे से मिले सहार के लिए।
हम यों ही एक से रहे कोई मस’अला न हो कभी
अमर हो जाए ये क्या क़यास लगाए नहार के लिए।
रंग बिरंगी इस दुनिया में हंसी हो सौहार्द हो खुशी का
दिलों में रौनक रहे इश्क़ न मिटे पुर–बहार के लिए।
शब्दार्थ:–
सहार :– धैर्य, सहनशीलता
नहार :– दिन, दिन का उजाला