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Shailendra Kumar Shukla, FRSC

Action Fantasy

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Shailendra Kumar Shukla, FRSC

Action Fantasy

जो

जो

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जो मैँ तुम्हारा मुकद्दर नहीं हूँ 

गमों की समझ कैसे आती तुम्हे है 

जो मैँ तुम्हारा सिकन्दर नहीं हूँ 

ज़मीं की कसक कैसे भाती तुम्हे है !


रवानी की फिर से कहानी लिखूँ तो 

तुम्हारी फिजा कितनी हसीन होगी 

हमे भी फिकर है ज़रा रूठने की 

गर खुश हो गये तो रंगीन होगी !


अभी तो मिले थे, लगता है ऐसा 

तभी तो हमारी महक भी वही है 

कहाँ छोड़ आये हमारी सनक हम 

सनम तुम हमारे, असल भी वही है !


हरा कर कभी किसे क्या मिला है 

जीत जायें तो भी तुम्हारा रब ना बनूँगा 

मुश्किल से कोई अपना मिला है 

सजा कर उसका दीदार करता रहूँगा !!


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