जो कहा किसी ने तिवारी जनेऊधारी
जो कहा किसी ने तिवारी जनेऊधारी
कोई जाति नहीं,
कोई धर्म नहीं,
आजादी से ब्याह रचाया था,
तुम बोलो
चूमा था जब
फांसी को तो
क्या गोत्र अपना बतलाया था।।
भारत माता की जय
उदघोष यही
फिर फिर हमने दोहराया था,
हर मन में तन में चिंतन में
बस देश देश ही समाया था।।
हम शोषित , पीड़ित माता को
बेड़ी में देख नहीं पाए
थी एक प्रतिज्ञा ‘मुक्ति’ की,
प्राणों की आहुति दे आए।।
हां गर्व बहुत इस संस्कृति पर
राम कृष्ण हनुमान गढे,
परशुराम से सिंह कई,
महावीर और बुद्ध बड़े।।
इसी धरा ने
इक डकैत को
वाल्मीकि भी कर डाला,
सबरी को माता बोला है,
मछुआरा व्यास ज्ञानवाला
हां इसी धरा ने समझाया,
कर्म बड़ा है जीवन में,
आत्मा अंश उस ईश्वर का
कभी इस तन में
कभी उस तन में ।।
फिर क्यूं नहीं दिखा ये गर्व तुम्हें
मूछों पर मेरे ताव में,
मेरी आंखों में न देखा,
जो आनंद मिला हर घाव में।।
तुमको इक डोरी दिखती है
उससे मुझको समझाते हो,
हूं टूट गया अंतर्मन में,
जो जाति मेरी बतलाते हो।।
फिर कहता हूं, तुम फिर समझो,
अग्नि की जाति नहीं होती,
केवल पैदा हो जाने से,
कुनवे की ख्याति नहीं होती।।
बस ताप बताया जाता है,
जब बात सूर्य की करते हैं,
बस ‘आज़ाद’ हुआ करते हैं वो,
जो देश के खातिर मरते हैं।