बाजार चुप है
बाजार चुप है
बाजार चुप है गलियों में आवाज भी नहीं
सुनतेँ हैं इस शहर में कहीं गोली कोई चली नहीं
जब दोस्त ने कर दिया सलाम तो कबूल
पर टुकडों में जो हो वो दोस्ती नहीं
उसका कसूर यह था कि वह बेकसूर था
सच का हुआ है कत्ल भरा हाशिम नहीं
चेहरे पर इतने चेहरे लगाये कि अन्जान हैं
आदम का वेष शेष है आदमी नहीं
आलोचना जनाब करें आप रोकिए
लेकिन हुजूर आपने पुस्तक पढी़ नहीं।