कैसी आज़ादी
कैसी आज़ादी
ऐ खुदा तेरे दर पर आकर
मैं फरियाद तुझसे कर रही हूं
किसी बेटी, औरत को यूं रौंदा न जाए
कहते हैं चांद पर पहुंच चुकी है दुनिया
आज़ादी के जश्न मना रही है
पर औरत को आज़ाद कहां कर पाये
पर धरती को सुरक्षित रख कहां पाये
घर से बाहर महफूज़ कहां है औरत
अब उम्र भी इन हैवानों के लिए मायने न रही
क्या बच्ची क्या जवान सब नोंची जाती हैं
न्याय उन दरिंदों का अदालत में होता नहीं है
अब आप से करती हूं फ़रियाद यही
करना उनका न्याय सज़ा देना ऐसी
उस दर्द से वो भी गुज़रे सज़ा देना ऐसी।