जल रही उम्मीद की लौ
जल रही उम्मीद की लौ
रजनी छंद (मात्रिक)
वो न बुझती आँधियो में, लड़ रही न्यारी।
जल रही उम्मीद की लौ, रात दिन सारी।।धृ।।
है बनी उम्मीद से ही, भव्य मीनारें।
है टिकी उम्मीद पर ही, दिव्य दीवारें।।
जिंदगी उम्मीद से है, पूर्ण आधारी।
जल रही उम्मीद की लौ, रात दिन सारी।।१।।
देखिए उम्मीद पर ही, आसमां पाता।
और इस उम्मीद से ही, जुल्म टकराता।।
जुल्म का उम्मीद से कर, नाश तू भारी।
जल रही उम्मीद की लौ, रात दिन सारी।।२।।
देखिए उम्मीद पर ही, क्या न कर पाए।
शत्रु भी उम्मीद पर ही, पूर्ण भिड़ जाए।।
जीत है उम्मीद से ही, युद्ध पर भारी।
जल रही उम्मीद की लौ, रात दिन सारी।।३।।
आसरा उम्मीद का ले, शांति ले आना।
साथ में खोया भरोसा, वापसी पाना।।
दूर कर उम्मीद से मन, तू अहंकारी।
जल रही उम्मीद की लौ, रात दिन सारी।।४।।
साथ ले उम्मीद का फिर, मौज है लाना।
साथ में उम्मीद से ही, लक्ष्य है पाना।।
बन रहे उम्मीद से ही, भाव संस्कारी।
जल रही उम्मीद की लौ, रात दिन सारी।।५।।
तू कभी उम्मीद को बस, हीन मत करना।
शक्ति पर उम्मीद के ही, है तुझे चलना।।
जोड़ तू उम्मीद से ही, प्यार से यारी।
जल रही उम्मीद की लौ, रात दिन सारी।।६।।
ये दीया उम्मीद का ही, है जला रखना।
जिंदगी उम्मीद से ही, है चला रखना।।
रख बचा उम्मीद गोकुल, भाव संसारी।
जल रही उम्मीद की लौ, रात दिन सारी।।७।।
