जज्बातों की सुनामी है आती
जज्बातों की सुनामी है आती
अब क्यों लाज बचाने कान्हा नहीं आते
काश चक्र से काट-काट कर जिस्म को
उनके गिद्धों को खिलाते
बैठे हैं इस मुल्क में मुंह फाड़ के अजगर
हिम्मत है किसी में तो दिखा दो फन
उनके कुचल कर
अब कोई भी माँ बहन बेटी महफूज
नजर नहीं आती
ना जाने और कितनी मासूम बली है
दी जाती
आज इसकी तो ना जाने कब किसकी
बारी है आती
सोचकर उस दरिंदगी को रुह भी है
छटपटाती
जिंदा जिस्मों से भी अब तो बास है
आती
जागेगा नहीं कोई अभी रात है बाकी
कुछ दिनों बाद एक नई न्यूज़ है आती
दो-चार दिन की हलचल
फिर चुप्पी है छा जाती
इन हालातों को देखकर
"जज्बातों की सुनामी है आती "
भिचते हैं दाँत
कसती है मुट्ठियाँ
और आँखें अंगार है बरसाती
इन अंगारों के सैलाब में काश
यह हैवानियत डूब जाती
क्यों हर बार इंसानियत की
परिभाषा है बदल जाती
