जज़्बात...
जज़्बात...
आज जज्बात लब्ज बनकर बह रहे है
हर रिश्ते को अपने आप में समेट रहे हैं
जिस पिता ने रात दिन एक कीए
पूरे करने को ख्वाब तेरे
जो मां रात भर जगती रहे
सिर्फ करने को तेरे पेहरे
बुजुर्गों के भी कुछ ख्वाब है तेरे लिए
क्योंकि उन्होंने भी देखे हैं बहुत अंधेरे
अब बारी है तुम्हारी
अब तुम्हें करने है सबके ख्वाब जो पुरे।
