महोत्सव...
महोत्सव...
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दुनिया की भीड़ में, हजारों के बीच में,
सबसे जुदा तुझे क्यों दिखना है??
अनगिनत महोत्सवों में तुझे पैसों को यूं बर्बाद जो करना है,
फिर भी दिल में एक सवाल है की सुकून कहा छुपा बैठा है?
सच में तुझे अपने अक्स से रुबरु होना है,
तो अपनी दो पल की खुशी को नजरंदाज कर,
जो सड़कों पर एक समय की रोटी मिलने पर जो खुशी का महोत्सव होता है,
देख एक पल उस मुस्कान को,
की बिना चकाचौंध का सुकून कैसा होता है।