जज़्बात बेच बेच के
जज़्बात बेच बेच के
जज़्बात बेच-बेच के खाने लगे हैं लोग।
शादी के ज़रिए पैसा कमाने लगे है लोग।।
आदर्श विवाह सिर्फ दिखावा है दोस्तों।
चैक भी एडवांस में मंगाने लगे है लोग।।
कैसा ये इंक़लाब है कैसा निज़ाम है?
कमज़ोर बेबसों को सताने लगे है लोग।।
करते है जो दहेज प्रथा का विरोध उन्हें।
पिछड़ा हुआ मनुष्य बताने लगे है लोग।।
कमज़ोर की पुकार पे 'राना' जी देखिए।
ज़ालिम के साथ हँसने-हँसाने लगे है लोग।।