"ज़िन्दगी"
"ज़िन्दगी"
ज़िन्दगी
ने हाथों से फिसलती रेत से पूछा,
एक बार, कौन है तेरी सहेली,?
वही जो संग तुम्हारे गाती है,
उलझा कर तुम्हें गीतों में
धीरे से फिसल जाती है।
उन्हीं छोटी-छोटी ख़ुशियों को
समेटने में लग जाती हूँ।
मुस्कुरा कर रेत ने कहा ज़िन्दगी से
तुझ में और मुझ में फर्क है।
इतना की मैं हक़ीक़त, वो सपना,
मेरी फिसलन दिखती है,
महसूस भी हो जाती है,
पर वो निगोड़ी देकर एहसास,
सफर के साथ, फिसल कर हाथों से,
ना जाने कहाँ खो जाती है।
मत पूछ उसका नाम
ज़िन्दगी कहलाती है।
