जिंदगी
जिंदगी
ये जिंदगी कुछ नहीं, बहता
पानी है जो निरंतर बहे जाती है।
मैं ना रुकूँगी किसी के लिए
सबसे यही कहे जाती है।
ये जिंदगी कुछ नहीं,
बहता पानी है जो निरंतर बहे जाती है।
चमकते पत्थरों को देख ये उन पर लुभा जाती है !
न्योछावर हो उन पर ये चोट खाती है !
तड़पती है, रोती है, पर कौन सुने उसकी जो
बिन कुछ कहे, दर्द लिए दिल में बस बहे जाती है।
ये जिंदगी कुछ नहीं बहता
पानी है जो निरंतर बहे जाती है।
शिकवा नहीं इसे किसी से,
सबकी अपनी मर्जी दो
मुहब्बत या कि नफरत !
लोभ जाती है, बड़ी भोली है,
नाँदा है इसकी फितरत !
रोती है तो रो मुझे क्या !
क्या मैंने कहा था जो शितमगर के
शितम खुद पर सहे जाती है।
ये जिंदगी कुछ नहीं बहता पानी है
जो निरंतर बहे जाती है।
