ज़िंदगी तुझ पर किताब लिखनी है
ज़िंदगी तुझ पर किताब लिखनी है
ज़िंदगी तुझ पर किताब लिखनी है
ज़िंदगी तुझ पर किताब लिखनी है।
उसमें सभी हिसाब लिखनी है।।
ख़्वाहिशों का अनुभव करके।
तेरे नाम जवाब लिखनी हैं।।
पलाश दहकती कचनार खिलती।
हर चेहरे को गुलाब लिखनी है।।
जो पूछे कोई पहचान है क्या।
सुनो खुद को हिजाब लिखनी है।।
चेहरे की लकीरों को पढ़ना क्या है।
आओ अब तो शबाब लिखनी है।।
भरी दुपहरी बैठ के सपना।
कलम तुम्हें लाजवाब लिखनी है।।
