जिंदगी के रंग
जिंदगी के रंग
मैंने देखा छोटी सी बच्ची थी,
तुतलाती जुबान से बोलती थी,
कुछ दिनों बाद वह बड़ी हो गई थी,
अब तो वह कॉलेज जाने लगी थी,
फिर मैंने देखा वह सजी संवरी रहती थी,
शायद उसकी शादी हो गई थी,
कुछ दिनों बाद ही वह सफेद वस्त्र में थी,
इतनी बड़ी अभागन थी,
इसी उम्र में वह विधवा बन गई थी।
यह जिंदगी भी क्या चीज है,
छोटी सी उम्र में हर रंग दिखा गई थी।