जिंदगी का जीवन
जिंदगी का जीवन
जिंदगी भी अजीब, शै है दोस्तो
कभी हँसती भी है तो
आवाज़ होती न झंकार।
उदासियों के साये घने
होते हैं जैसे बेआवाज
कभी रूठती भी है तो
मनाने की जहमत
कभी उठाता है कोई।
जैसे दुख में हमसाया
खुद से दूर होता है कोई
कभी रोती भी है तो
पलकों पे शबनम
भीगता है कतरा-कतरा।
बागानों की कौन कहे अपने
भी दूर होते हैं रफ्ता-रफ्ता
क्या जिंदगी और नहीं है क्या ?
कभी लगता नहीं, सपना है क्या ?
खुद के वजूद से
जब बेगाना है मन
तो करें क्यों व्यर्थ
जियें हर पल का जीवन।
बनें किसी के बनावें
किसी को अपना।
समरसता का भाव लिए
सच हो, सबका सपना।
न तुम रहो न रहूँ मैं
एकात्म हो, जीवन शुभम
गूंजे यह नारा, जीवन बनें
सत्यम, शिवम सुंदरम।
जिंदगी भी अजीब शै है दोस्तो।।
