जिन्दगी एक फ़िल्म
जिन्दगी एक फ़िल्म
जिन्दगी एक फिल्म की तरह होती है,
इसमें भी फिल्म की ही तरह एक कहानी होती है,
पात्र होते हैं और होती है प्रसंग,
कथानक के इर्द-गिर्द ही घटनायें घूमती है,
इसमें भी हर एक की जिन्दगी में खुद की
नायक की तरह या खलनायक की तरह भूमिका होती है !
इसमें भी नायक को पाने के लिए नायिका हर हद
से गुज़रती है,
और नायक भी हर बाधाओं को पार कर आखिरकार नायिका को पा ही लेता है!
मगर रुकिए दोस्त अभी फिल्म की ही तरह जिन्दगी का क्लाईमेक्स अभी बाकी है,
अभी तो इंटरवल की शुरुआत ही हुई है !
इंटरवल के पहले तक फ़िल्म की ही तरह हमारी भी जिन्दगी की भी शुरुआती चरण होती है,
हर कड़ी -दर - कड़ी जुड़कर ही फ़िल्म की शुरूआत होने से लेकर इंटरवल
और फिर क्लाईमेक्स तक और फिर अंत तक फ़िल्म चलता रहता है,
वैसे ही जिंदगी चलती रहती है !
सदा चलती रहती है, अविरल गति से
सतत और निरंतर !
जिस प्रकार हर एक फ़िल्म की कहानी होती है ,
ठीक उसी प्रकार हर एक जिंदगी की कहानी होती है!
उसके कथानक होते हैं!
जिस प्रकार कई फ़िल्में जो अपनी कहानी के दर्शकों पे प्रभाव न जमा पाने के कारण फ्लॉप हो जाती है,
ठीक उसी प्रकार कई जिंदगियां भी अपनों पर और दुनिया में
अपनी एक अलग प्रभावोत्पादक छवि नहीं गढ़ने के कारण गुमनाम-सी हो जाती है !
मगर हरएक की जिंदगी कुछ कहानी कह रही होती है,
फिल्म की तरह
तभी तो जिन्दगी भी एक फ़िल्म है।