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Kumar Pranesh

Romance

4  

Kumar Pranesh

Romance

ज़िन्दगी ढलती रहे

ज़िन्दगी ढलती रहे

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जिन्दगी ढलती रहे मगर सुकून पैगाम से होगा,

मेरे अल्फ़ाज सांसों में बसे उस नाम से होगा,

घर मैकदा, रात अधूरी, शाम खींची खीचीं है पर,

आवारा रूह को तस्कीं शक्ल-ए-शाम से होगा।


दिल है खौफ़जदा मेरा सोच कर यह कि,

तबस्सुम आँखों में आया है सोच कर यह कि,

मुद्दतों बाद दीदार-ए-हुस्न की शब है आइ पर,

क्या जेहन में उनके भी धड़कन मेरे नाम का होगा ?


क्या आँखों में अब भी कशिश ठहरा हुआ होगा,

या पलकों पे रिवाज-ए-रश्म का पहरा हुआ होगा,

हसरत-ए-दीद हो तेरा गुजारिश है इतनी मेरी,

प्यासी आँखों को तासीर नज़र-ए-ज़ाम से होगा।


फ़लक पे चाँद तारे पर जहाँ रोशन नही मेरा,

पतंगा कैसे जल जाये शमा रोशन नही मेरा,

अंधेरा खुद हीं मीट जाये अरे नूर-ए-गजल मेरी,

जो तेरा चाँद सा चेहरा मेरे सर-ए-बाम पे होगा।


मजम्मत जमाना करे मेरी चलो मंजूर है मुझको,

फासला भी ताउम्र की चलो मंजूर है मुझको,

तेरे बाहों मे दम निकले मुक्कमल हम हो जाये,

हासिल क्या हमे ऐसे ज़ौक़-ए-खाम से होगा !


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