जिंदगानी
जिंदगानी
उन चरागों को जलाकर क्या करना
जहाँ आँखों में ही अंधेरों का ढेर है।
भूल गए हैं लोग खुद की पहचान को
यहाँ इंसान को ही इंसान से ही बैर है।
मुकद्दर पे कर भरोसा कैसे जीये जिंदगी
बिना तकलीफ़ तो हर जगह में अंधेर है।
हर बात मुकम्मल होती है खुदा के दरबार में
हो अंधेरा रात को फिर सारे जहाँ में सबेर है।
उन शमाओं को जलाने से क्या होगा जिंदगी में
मुरादों में तुम्हारी औरों के लिए जो कहर है।
