जिम्मेदारी
जिम्मेदारी
कर्तव्य जिम्मेदारी से मुँह मोड़ती पीढ़ियां
वृद्धा आश्रम पहुंचाती निभाते जिम्मेदारियां
अजीब सोच है पढ़े लिखे लोगों की
पहले अनपढ़ पडे रहते थे प्यासे प्रेम भोग की
सारे रिश्ते बखूबी निभाऐ जाते थे
अब अपने ही अपने भूलाऐ जाते है
खुद मजा करते नहीं चाहते कम हो दूरियां!
मानसिक सोच का उठा है वह बवंडर
हर रिश्ते नाते अब लग रहे हैं खंडहर
कौन आया कौन गया कोई फर्क नहीं पडता
हाय रे दुनियां कैसी हो गई
कोई अर्ज नहीं कहता
एकता हो आपस में डाल रहा हूँ अरजियां!
