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शैलेन्द्र गौड़ कवि

Abstract

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शैलेन्द्र गौड़ कवि

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अपने और बेगाने

अपने और बेगाने

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अपने और बेगाने में फर्क है बस इतना,

बेगाने देते साथ अपने देते देखो कितना !


चंद दिनों के मेले हैं जीवन के झमेले हैं,

ज्ञानी बन के भी हम न सीख सके जीना !


कुछ कमियां दिखती है अपने ही अंदर,

झूठ की दीवारों पे उछल रहे बन बंदर !


दिन प्रतिदिन तोड़ते हां विश्वास की डोरी,

अपने और बैगाने की सोच पाले हैं अन्दर !


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