अपने और बेगाने
अपने और बेगाने
अपने और बेगाने में फर्क है बस इतना,
बेगाने देते साथ अपने देते देखो कितना !
चंद दिनों के मेले हैं जीवन के झमेले हैं,
ज्ञानी बन के भी हम न सीख सके जीना !
कुछ कमियां दिखती है अपने ही अंदर,
झूठ की दीवारों पे उछल रहे बन बंदर !
दिन प्रतिदिन तोड़ते हां विश्वास की डोरी,
अपने और बैगाने की सोच पाले हैं अन्दर !
