जीवन से सम्बन्ध पुराने
जीवन से सम्बन्ध पुराने


उधर अधूरे स्वप्न आँख में, इधर मृत्यु बैठी सिरहाने।
तोड़ें भी तो, कैसे तोड़ें, जीवन से सम्बन्ध पुराने।।
एकाकी ही जिए सदा हम, गए प्यार में छले निरन्तर।
झूठी आशाओं में खोए, बहके-बहके चले निरन्तर।
कभी लड़खड़ा गए कहीं तो, स्वार्थ लपक कर बढ़ा उठाने।
तोड़ें भी तो, कैसे तोड़ें, जीवन से सम्बन्ध पुराने।।
फ़ूट-फूट कर लगते रोने, कभी अचानक हँसते-हँसते।
सुन्दर सपने देखे जब-जब, देखे हमने डरते-डरते।।
गढ़ी समय ने कथा अनूठी, बुने वक्त ने अजब फसाने।
>तोड़ें भी तो, कैसे तोड़ें, जीवन से सम्बन्ध पुराने।।
एक नदी बहती है उर में, अहसासों के मीठे जल की।
मधुर बाँसुरी रख अधरों पर, तान छेड़ती है कल-कल की।
नीरवता लग जाती उस पर, ऊँचे स्वर में गीत सुनाने।।
तोड़ें भी तो, कैसे तोड़ें, जीवन से सम्बन्ध पुराने।।
सोच रहे हम नींद त्याग कर, उठें, भोर को गले लगाएँ।
फिर लगता जो सुप्त पड़ी वे, अभिलाषाएँ पुनः जगाएँ।
ढूँढ़ रहे हैं व्याकुल मन से, जीने के कुछ नए बहाने।
तोड़ें भी तो, कैसे तोड़ें, जीवन से सम्बन्ध पुराने।।