जीवन का आनंद
जीवन का आनंद
उनके हाथों के छालों में,
सने मटमैले बालों में,
तपते क्षुधा उदर की आग में,
गुनगुनाते क्लेश की राग में।
शयन धरा पर करते कहीं कोना -कोना,
सपना नहीं है राजसी बिछौना।
दरिद्र जब अपनी मस्ती में गाता है।
आनंद जीवन का इसे खूब आता है।
ना कल की परवाह इसे,
दुख भरे दिन यादें किस्से,
बस दो जून की रोटी इसे भाता है।
आनंद जीवन का इसे खूब आता है।
ठंड में ठिठुरता, सकुचाता,
गर्मियों में कड़ी धूप जलाता।
बरसात में भीगते, सर छुपाते,
कभी झुग्गियों में या फुटपाथ पर रात बिताते।
कभी राहगीरों से, कभी अमीरों से।
चाह लिये चंद पैसे की आता है।
आनंद जीवन का इसे खूब आता है।