बेटी की अभिलाषा
बेटी की अभिलाषा
हम बेटी इस दिव्य जगत् के,
कभी कोख में ही मिट जाते हैं।
होते हैं जब अवतरित धरा पर,
तो भी जुल्म हम पर ढाते हैं।।
प्रकृति ने सृजन कर जगत् में हमें उतारा है।
फिर तो मानव ये कैसा भेदभाव पसारा है?
उड़ सकते हैं उन्मुक्त गगन में हम भी,
हमें परी तो बन जाने दो।
भ्रम के जंजाल को तोड़ो,
हमें भी तो आजमाने दो।।
करेंगे मानवता व जगत् को रौशन,
ऐसी फूलझडियां बन जाने तो दो।
यातनाओं की बेड़ियां हमसे दूर रखो।
हम भी ऊंचे उठ सकते हैं जरा देखो।
जननी जन्मभूमि के लिए करें हम भी समर्पण,
हैं बेटियां भी इस समाज का अमूल्य धन।।
देखो दुनिया वालों बेटियों की भी दिलासा।
गौर से देखो आखिर क्या है?
हम बेटियों की अभिलाषा।।
