बचपन
बचपन
नटखट मन की रहती धुन,
होते सारे इकट्ठा चुन - चुन।
शाम ढले अंधेरा घनघोर,
करते हैं जब चहुंओर शोर।।
कभी गाते और चिल्लाते,
कभी प्रसन्न हो, आपस में बतियाते।
कभी आंख मिचौनी या गिल्ली डंडा खेल,
कभी सवार बन, कभी बन जाते रेल।।
कभी दादी मां की सुनते लोरी,
किस्से गीत, वह चंदा - चकौरी।
अपने नटखट से परिजन को सताते,
कभी रूठकर शेर बन जाते।।
मन में चिंता, कहां जीवन की,
लीन रह, करते अपने मन की।
क्रूर ना बैर की इसे चाह,
प्रेम, ममता की ना इसे थाह।।
