मैं बच्चा हूं..(बाल कविता)
मैं बच्चा हूं..(बाल कविता)
मैं बच्चा हूं
मैं बच्चा ही रहना चाहता हूं
अपनी शैतानियों और नटखट पन में
मैं बचपन ये जीना चाहता हूं
मैं बच्चा हूं
मैं बच्चा ही रहना चाहता हूं।
ऊंचे ऊंचे ख्वाब है मेरे
ऊंचे आसमान में पतंग बन उड़ना चाहता हूं
मैं इस नील गगन में इंद्र धनुष सा
सतरंगी दिखना चाहता हूं
मैं बच्चा हूं
मैं बच्चा ही रहना चाहता हूं।।
ना कोई चिंता न डर किसी का
मैं बैखौफ जीना चाहता हूं
क्यों फिक्र करूं कल की
मैं हवा सा बहना चाहता हूं
मैं बच्चा हूं
मैं बच्चा ही रहना चाहता हूं।
रात हो कितनी घनेरी
मैं दिए सा जलना चाहता हूं
अंधियारी रात में जुगनू संग
मैं हरदम चमकना चाहता हूं
मैं बच्चा हूं
मैं बच्चा ही रहना चाहता हूं।।
ना लालच है धन दौलत का
ना महलों में रहना चाहता हूं
मैं सीधा साधा भोला सा
मैं भोला ही रहना चाहता हूं
मैं बच्चा हूं
मैं बच्चा ही रहना चाहता हूं।
रूखा सूखा खाकर मैं
मस्त मगन होना चाहता हूं
छोटी छोटी खुशियों को
परिवार संग जीना चाहता हूं
मैं बच्चा हूं
मैं बच्चा ही रहना चाहता हूं।।
चंदा मामा की कहानियां
परी लोक में जाना चाहता हूं
मैं मां की गोद में सदा
बच्चा बन सोना चाहता हूं
मैं बच्चा हूं
मैं बच्चा ही रहना चाहता हूं।
जग में नाम मैं रौशन कर दूं
ऐंसे ख्वाब मैं रखना चाहता हूं
मैं सूरज सा असमान में
सदा चमकना चाहता हूं
मैं बच्चा हूं
मैं बच्चा ही रहना चाहता हूं।।
