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अनुपम मिश्र 'सुदर्शी'

Children Stories Inspirational Children

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अनुपम मिश्र 'सुदर्शी'

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देव-पुत्र

देव-पुत्र

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ओ सखे! भूमि यह देव जननि, 

अनुपम अक्षय है अंक सघन। 

अनुमोदित है यह पुण्य धरा,

 माटी, पानी और प्रेम, पवन।।

 दैत्य दलों की भुजा काट,

छाती में भगवा गाड़ा है।

निज बाहुबल के पौरुष से,

इन्हें भींच भींच के फाड़ा है।।

उपवन की राह त्याग हमने,

कंटकमय वन को घेरा है।

एक हाथ पिस्तौल थाम कर।

और एक मूंछ पर फेरा है।।

शस्त्र, शास्त्र की दीक्षा दे।

सिंहों सम शावक पाले हैं।

परशु उठाकर नीच अधम,

अनगिनत भूपती मारे हैं।

यदि तप करने पर भी न दिया,

धनु छीन लिया नारायण से।

दीक्षा योग्य उन्हें ही समझा,

जो दिखते कर्तव्यपरायण से।

द्रोही के हृदय में हो संशय,

पूछे माटी से ही परिचय।

ये आर्यावर्त की पुण्य धरा,

युग युग पुकारती जय जय जय।।

     -अनुपम मिश्र 'सुदर्शी'

 उन्नाव, उत्तर प्रदेश 

  


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