भुला दे मेरी मंजिल, ले चल मुझे आसमानों के ऊंचाइयों पर
भुला दे मेरी मंजिल, ले चल मुझे आसमानों के ऊंचाइयों पर
भुला दे मेरी मंजिल, ले चल मुझे
आसमानों के ऊंचाइयों पर
सागर के इस सफर में तू ले चल मुझे राह के सहरों पर
कोशिश तब भी जारी थी कोशिश आज भी जारी है
कोशिशों के इस आलम में, मुझे ले चल हौसले के बुलंदियों पर
ये ना देख के मैं किस घर से निकल आया हूँ,
तू किसी रोज देखेगा मुझे मेरी मंजिलों पर
चलता रहूँ मैं इस सफर में दिन रात, हिसाब और बेसबर
तू मेरा नाम लेगा, मुझको मेरी मंजिलों की शान पर
क्या खूब थे वो सफर और वो सफर के पत्थर
मेरे मेहनत का बदला देने के लिए सारे तैयार है
इस सफ़र का एक एक पत्ता एक एक पत्थर
ये बदल ये सूरज और ये समंदर जमा होंगे मेरी अदालत पर
तू देखेगा मुझे इसी दुनिया के ताज ओ तख्त पर
मिलेगा मंज़िल मुझे भी किसी रोज़
तू सुनेगा मेरे नाम के चर्चे आसमान पर
भुला दे मेरी मंज़िल, ले चल मुझे
आसमानों के सैर पर
