जीते जागते रोबोट ...
जीते जागते रोबोट ...
एक वक्त था
जब मिलकर
बात करते ..
मिठास से
भरी हुई बातें
रस घोलती थी
कानों में ...
घर मुस्कुराता था
कोना कोना
जगमगाता था ..
अब सब चुप हैं
ख़ामोश हैं ..
अपनी रुपहली
दुनिया में सिर्फ़
अंगूठे चल रहे हैं
शब्द चल रहे हैं
प्रतीक और चिन्ह
चल रहे हैं...
काली ..नीली .
रेखा दिखती हैं
और दिखते हैं
एप .....
अब सब नेट की
दुनिया में सेट हो
जाते हैं ..
यथार्य की दुनिया
से कट जाते हैं
क्या ये भी पत्थर
होना नहीं है
सम्वेदना को
दिखावे जैसा
ढोना नहीं है ..
ये मशीन को
गले लगाकर ..
भावों से बना ली
दूरी ....
पर आने वाले
समय में इसके
दुष्परिणाम सामने
आएँगे ... देखना
फिर यहाँ वहाँ
जीते जागते
रोबोट नजर आएँगें !!!