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Dr. Sudarshan Upadhyay

Drama

2.5  

Dr. Sudarshan Upadhyay

Drama

जीने का हिसाब

जीने का हिसाब

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क्या सोच कर आया था तू

किस जहाँ में कदम रखा है


तेरे आने से पहले ही

दुनिया ने जीने का ब्याज चढ़ा रखा है


आँख खुलते ही पहली साँस

किसी और की मेहरबानी थी


तेरा बचपन, तेरी जवानी

किसी और की लिखी कहानी थी


बुढ़ापे का जो जमा रखा

उसका जिक्र ना कर


जो अभी तक जिया,

वो उधार की जिंदगानी थी


क्या खोया, क्या पाया

हर खुशी का सवाल रखा है


हर एक सपने को संजो कर

जिंदगी की किताब में रखा है


तृष्णा के पीछे भागते भागते

जो ठोकरें लगी

उसका भी जवाब रखा है


आखिर में जब तोलेगा

राख ही बचेगी हाथों में


जो गुजर गयी सिसकियों में

उन साँसों का भी हिसाब रखा है


क्या सोच कर आया था तू

किस जहाँ में कदम रखा है


फ़िर सोचा एक दिन...


काश एक और जिंदगी दे दे कोई

सारे गलत सही कर दू

फ़िर सोचा..., छोडो यार

जीने का इतना हिसाब किसने रखा है।।


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