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Dr. Sudarshan Upadhyay (Samar)

Romance Classics

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Dr. Sudarshan Upadhyay (Samar)

Romance Classics

तुम

तुम

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तन्हाई में बिरले ही कभी,

खुद को अकेला पाया है

अँधेरे मैं भी जो साथ चलता,

तेरा ही तो साया है।


गुजर ही जाएगा,

फंसला ये चांद लम्हों का

फिर तो उम्र भर

तेरी पलकों का साया है।


ना जाने क्यों

बिना जहमत तूने मुझे अपनाया है

इसी मासूमियत ने तेरी

मुझको दिवाना बनाया है।


जो दूरी हो दिलो मे तो

और बढ़ता प्यार है

जो छुपती दिख रही

बदलो मैं चांदनी

ना जाने क्यों लगे

की वही तो मेरा यार है।


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