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Sangeeta Ashok Kothari

Classics

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Sangeeta Ashok Kothari

Classics

जी हाँ,आजकल में लिखती हूँ

जी हाँ,आजकल में लिखती हूँ

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1) हिन्द मेरा वतन, ज़ुबाँ पर हिंदी, दिल में हिंदुस्तान रखती हूँ,

अपनी बात को अपनी भाषा में कहने की चेष्टा करती हूँ,

चाहे कसैले तंज़ हो मधुमय बनाने का प्रयास करती हूँ,

....जी हाँ आजकल में हिंदी में लिखती हूँ।


2) हिंदी हैं मेरी हमजोली, मेरी सखी, मेरी अभिन्न सहेली,

बचपन से इसे पढ़ा यही थी भाषा बोली चाली की,

उन्हीं शब्दों को भाषा का जामा पहना देती हूँ,

जी हाँ आजकल में हिंदी में लिखती हूँ।।


3) जज्बातों को जहीन शब्दों से भिगो कलमबद्ध करती हूँ,

शब्दों का एहसास करके भावों में पिरो देती हूँ,

कभी सराहना के दो शब्द सुनने की प्रतीक्षा भी करती हूँ,

... जी हाँ आजकल में हिंदी में लिखती हूँ।।


4) अंगड़ाई लेते भाव झट से कागज़ पर ऊकेर देती हूँ,

बोलना तो दशकों से जानती थी अब कहना सीख गयी हूँ,

कोई त

ारीफ़ करें लेखनी की तो मुस्कुरा के खिल उठती हूँ,

.जी हाँ आजकल में हिंदी में लिखती हूँ।।


5) हिंदी राष्ट्रीय धरोहर हैं, जागीर समझ हिफाज़त करती हूँ,

वृहद वर्णमाला का इसका दायरा मैं सहेज कर रखती हूँ,

भाषाओं की भीड़ में अपनी राष्ट्र भाषा का उपयोग करती हूँ,

जी हाँ आजकल मैं हिंदी में लिखती हूँ।


6) कलम दिल की थाह नाप लेती ऐसा मैं मानती हूँ,

ख़ुशी हो या ग़म हो अलफ़ाजो से छलकाती रहती हूँ,

आत्मसंतुष्टि का आह्वान स्याही को कूची में पोतकर करती हूँ,

जी हाँ आजकल में हिंदी में लिखती हूँ।।


7) वर्णों को मर्यादा में रख संक्षिप्त में बात कहना सीख गयी हूँ,

पराकाष्ठा हर भाव की महज शब्दों से उजागर कर देती हूँ,

राष्ट्र भाषा की प्रेमी, वतन-ए -मोहब्बत का इज़हार भी करती हूँ,

जी हाँ आजकल में हिंदी में लिखती हूँ।।


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