झील के किनारे
झील के किनारे
बैठा हुआ था मैं झील के किनारे
खेलते हुए हंस लग रहे थे प्यारे
वृक्ष चारो और थे , लग रहा था हरा समंदर
मीठी मीठी हवाए चली , सुंदर लग रहा था अम्बर
महसूस किया जब मैने हवाओ के झोंके को
ऐसा लगा किस्मत वाला हु जो पाया इस मौके को
ऐसा लगा जैसे प्रकृति ने अपने गले लगाया हो
ऐसा लगा जिसकी तलाश थी उस शांति को पाया हो
झील के बीचों बीच चल रहा था दक फव्वारा
झील की सुंदरता को जिसने था निखारा
नादान बच्चे खेल रहे थे झील के पानी मे
शायद यही वो झील है जो लेखक लिखते अपनी कहानी मे
इस झील के किनारे प्रकृति ने किया मेरा आलिंगन
देख समीप से कुदरत को खुश हुआ मेरा मन
भूल गया था मैं अपने जीवन के गम सारे
बैठा हुआ था मैं जब झील के किनारे।