STORYMIRROR

Piyush Goel

Abstract

4  

Piyush Goel

Abstract

झील के किनारे

झील के किनारे

1 min
352


बैठा हुआ था मैं झील के किनारे

खेलते हुए हंस लग रहे थे प्यारे

वृक्ष चारो और थे , लग रहा था हरा समंदर

मीठी मीठी हवाए चली , सुंदर लग रहा था अम्बर


महसूस किया जब मैने हवाओ के झोंके को

ऐसा लगा किस्मत वाला हु जो पाया इस मौके को

ऐसा लगा जैसे प्रकृति ने अपने गले लगाया हो

ऐसा लगा जिसकी तलाश थी उस शांति को पाया हो


झील के बीचों बीच चल रहा था दक फव्वारा

झील की सुंदरता को जिसने था निखारा

नादान बच्चे खेल रहे थे झील के पानी मे

शायद यही वो झील है जो लेखक लिखते अपनी कहानी मे


इस झील के किनारे प्रकृति ने किया मेरा आलिंगन

देख समीप से कुदरत को खुश हुआ मेरा मन

भूल गया था मैं अपने जीवन के गम सारे

बैठा हुआ था मैं जब झील के किनारे।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract