" जगत में ठगनी माया "
" जगत में ठगनी माया "
माया सबको लुभाती ,करो न ज्यादा प्रीत
इस माया के जाल से , हुई बुद्धि विपरीत
हुई बुद्धि विपरीत , देखकर नर पगलाता
रहे न होश हवाश ,कष्ट जीवन में पाता
कह "जय" जन चेताय, साथ वह कुछ ना लाया
करो न उससे हेज , जगत में ठगनी माया