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Dr Shikha Tejswi ‘dhwani’

Tragedy

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Dr Shikha Tejswi ‘dhwani’

Tragedy

जब ये वृद्ध हो जाती हैं

जब ये वृद्ध हो जाती हैं

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आज आँखों के सामने मंज़र वही दोहरा गया,

जब मित्र की माँ के अंतिम दर्शन का अवसर मिला।


पॉँच वर्ष पूर्व जनवरी का ही माह था,

छूट गया साथ जब मेरा और माँ का

ऐसे ही तो बुत बनकर पड़ी हुई थी,

न हिलती थी, न डुलती थी, न साँस ही लेती थी।

लोगों की भीड़ खचाखच भरी हुई थी,

उनको क्या मतलब किसी से,

वो तो चल बसी थी।


जाने क्या होता है इनको,

जब ये वृद्ध हो जाती हैं?

अपने ही बच्चों से जाने ,

क्यूँ ये रुष्ट हो जाती हैं ?


ऊँगली पकड़ कर चलना सिखाया,

क्रंदन सुनकर सीने से लगाया।

अकेले हमें छोड़ने में जो डर जाया करती थी,

आज अपने लिए हमें रोता छोड़ जाती हैं ?


हमें भी यही दोहराने की सीख दिए जाती है,

अपने बच्चों को अकेला करने की हिम्मत दिए जाती है।

जाने क्या होता है इनको ,

जब ये वृद्ध हो जाती हैं।

जब ये वृद्ध हो जाती हैं।



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