जब शाम को सवेरा होगा
जब शाम को सवेरा होगा
जब किसी रोज़ शाम को सवेरा होगा
मानो ना मानो वही पल तेरा होगा
उस रात चमकेगा सूरज अँधेरों में
भटकी हुई कश्ती को मिल रहा किनारा होगा
उसी क्षण मिलेंगे नदी के दो तीर
जब पानी उफान पर आ रहा होगा
जब साँसे थम जाएंगी मेरी और तुम्हारी
ये ज़माना ना मेरा होगा ना तुम्हारा होगा
ये जो गुरूर है तुम्हें तुम्हारे ओहदे पर
पलक झपकते ही किसी और का होगा
और टूट जाओगे भीतर से तुम भी
जब सपनों का मकान ढह रहा होगा
आज ही लगा लो चार ठहाके खुल कर
क्या पता कल कैसा मंज़र होगा
कर लो कुछ बातें शहद भरी आज
ना जाने कल दोनों के हाथों में
नफ़रत का खंजर होगा
निकल आए है बहुत दूर तक आगे
अब कहाँ पीछे मुड़ने का जिक्र होगा
जो भी होगा देखेंगे आगे
बस यकीं है इतिहास के पन्नों पर
अपना नाम भी कभी जवां होगा
जब किसी रोज़ शाम को सवेरा होगा
मानो ना मानो वही पल तेरा होगा
