जब मैं एक तितली थी
जब मैं एक तितली थी
सावन आते ही,
र्ख गेरुए से ये पहाड़,
हरी चादर ओढ़े हुए,
कितनी खुशहाली लाते हैं,
सुना सा वो आसमान,
सतरंगी रंगों से सजा हुआ,
दिलों में उमंग जगाते हैं,
और यहाँ मैं,
सजी हुई बैठी हूँ,
एक पीली तितली सी,
नृत्य करने को तैयार,
हवा की तरंगों के संगीत पर,
इतराती हुई झूमूँ मैं,
इस हरी चादर पर,
देखूँ उस आसमान की ओर,
कुछ रंग चुराने की लालसा में,
यूँ ही उड़ती चलूँ मैं,
एक पीली तितली सी।