जब जा ही चुके हो
जब जा ही चुके हो
जब जा ही चुके हो हर गिरह छुड़ाकर तो क्यूँ बार बार अमूर्त रुप से मेरी यादों में दस्तक देते हो,
जाकर भी शायद तुम जा नहीं पाए चुटकी भर मेरे दिल के एक खास कोने में में मेरी जान बनकर धड़क रहे हो...
हदें निगाह जाती है वहाँ तक आज भी जिस मोड़ से तुमने मुँह मोड़ा था कभी न लौटकर आने के लिए,
क्यूँ मेरे दिल में एक लौ थरथराती है लम्हा दर लम्हा,
क्या आज भी तुम्हारी यादों की अंजुमन में मेरे नाम की चिंगारी जगमगाती है?
तन्हा रात के मद्धम बहते पहर में मेरी बेताब साँसें तलाशती रहती है करवट दर करवट तुम्हारे जिस्म की खुशबू हमेशा,
क्या तुम्हारी उँगलियों के पोरों में बसी मेरी प्रीत की सुगंध महका जाती है तुम्हें कभी...
क्यूँ हर सूँ हर दिशा से तुम्हारे कदमों की आहट सननन सी बहती मेरे कान के पर्दों को चीर जाती है,
कहो ना क्या मेरी यादों में मचलते तुमने भी अब वापस आने की ठानी है।