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Tej prakash pandey

Tragedy Fantasy

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Tej prakash pandey

Tragedy Fantasy

जाति नहीं मैं मानव हूँ

जाति नहीं मैं मानव हूँ

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जातिवाद के नाम पे हमको,

आखिर कब तक तुम बांटोगे।

नाम नही पर्याप्त क्या मेरा,

क्यू उपनाम से मुझे बुलाओगे।


एक पिता की सब संताने,

क्यूं इनको बहकाओगे।

भारत का मैं अटल निवासी,

कब ये पहचान दिलाओगे।


मेरी संस्कृति मुझसे कहती,

वेद पुकारे चीख चीख के।

पिता वैद्य पुत्र कवि और,

माता पीशती अनाज को थी।


समतामूलक परिवार मेरा,

क्यू मुझसे है दूर किया।

तुछे ओछे स्वार्थ विवश हो,

जाति में हमको बांट दिया।


पुरुषोत्तम श्री राम शबरी घर,

या घनश्याम ने जाती देखी थी।

दुर्योधन की सजी थाल तज,

विदुर गृह साग जो खायी थी।


प्रकृति कहु या कहु नियति,

जन्म का एक उपाय किया।

निज स्वार्थो के वशिभूत फिर,

फिर जाति में हमको बांट दिया।


जाति केन्द्रित हमको गिन रहे,

बताते रहे विकास है कारण।

बांट दिया भाई भाई को,

बना ये कैसा समाज अकारन।


ये कैसा विश पाश है फ़ेका,

मिल न सके हम कब के बिछड़े।

कोई बैठा शीर्ष पे जाके,

कोई रह गये एकदम पिछड़े।


आओ हमको एक मिलाओ,

जाति का ये भेद मिटाओ।

कालिख मैली को धो आओ,

संस्कृति पे मत दाग लगाओ।


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