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Ruby Prasad

Tragedy

4  

Ruby Prasad

Tragedy

जाने किस ओर

जाने किस ओर

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कट रहे हैं पेड़ 

लुट रही है बेटियाँ 

बदल रहा है फैशन

नंगी हो रही है दुनिया 

एकल हो रहे हैं परिवार 

संस्कारों की उड़ रही है धज्जियाँ 

झुक रहे है माँ बाप

उदंड हो रही है पिढ़ीयाँ

समानता के लग रहे है नारे


रिश्तों के दरमियाँ आ रही दुरियाँ

पैसा, हक,अधिकार, मैं, मैं, मैं 

के चक्रव्यूह में फंसती जा रही है

दुनिया 

खोखला हो रहा है इंसान 

मुखौटे लग रहे हर चेहरे पर

सिर्फ और सिर्फ हँस रही है सेल्फियाँ

ये सब देख मन में आता है एक सवाल

किसके पीछे और क्यों भाग रहे है हम

जाने किस ओर जा रही है दुनिया ?


लग रहे हैं नारे

हो रहे है आंदोलन

उठ रहे है सवाल

कलम लिख रही है आक्रोश 

निडर हो रहे है

लोग

जब_जब लुट रही है बेटियाँ 

तब_तब जल रही है मोमबत्तियाँ 

पढ़ रही है बेटियाँ 

आगे बहुत आगे बढ़ रही है

बेटियाँ 

इन सबके बावजूद जाने क्यों जल

रही है बेटियाँ ?

जाने क्यों मर रही है बेटियाँ !!


ये गलत है

वो गलत है

ये नहीं ये होना चाहिए 

वो नहीं वो होना चाहिए 

तर्क वितर्क, दोष आरोप 

सब एक दूजे पर उठा रहे

हैं उंगलियाँ

जो बढ़ रहे हैं उनके खींच रहे है पैर

जो गिर रहे है उनमें निकाल रहे हैं कमियाँ

जो करते है मार्गदर्शन वो चुभते है आँखों में 

जो है मजबूर है छंटते है समाज से

बोल बच्चन वालों में दिख रही है खुबियाँ

जाने किस ओर जा रही है दुनिया ?

जाने किसके पीछे भाग रही है दुनिया ?



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