जाने ख़ुदा क्या देखते हैं
जाने ख़ुदा क्या देखते हैं
दीदा-ए -पुर-हैरत से हम वा देखते हैं,
देखते हैं, जाने ख़ुदा कि क्या देखते हैं...
देखती है अहल-ए-नज़र फ़रेब-ए-दशना-पिन्हाँ,
और हम कूचा-ए-यार की आब-ओ-सबा देखते हैं...
यूँ तो है एक दुआ निकलने को बेताब कब से,
बड़ी हसरत से तुझे हम मग़र बेनवा देखते हैं...
बहुत सुकुंदाद है ज़ख्म तेरे दस्त-ए-ख़ूबाँ का,
ग़फ़लत में भी कभी करिश्मा-ए-दशना देखते हैं...
फुरक़त का जो पैग़ाम, लाया है कारिंद-ए-ख़ुदा आज,
कभी नामाबर ख़ुदा, कभी तेरा नामा देखते हैं...
हम पे है इलज़ाम, बे-ग़ैरत-ओ-हाजत होने का,
देखते हैं नाक़िद, खुद अपना मुवाखज़ा देखते हैं...
जलता पाते हैं जो ग़ौहर मैं क़ाशाना कोई,
दिल-ए-सोग़वार से भी, उठता धुआँ देखते हैं...
देखते हैं रोज़, महफ़िल को अपनी वीराँ होते,
बड़ी मुद्दत से तक़दीर, तेरा तमाशा देखते हैं...
नामा-ए-मलक़-उल-मौत आया तो ये सोचा,
बाकी ज़िन्दगी से अपना, हिसाब क्या देखते हैं...
चाराग़र की सई रायगाँ, बेसबात आब-ए -बक़ा रही,
क्या करती है असर, सनम तेरी दुआ देखते हैं...
हवादिस-ए-जहाँ से, अब तक नज़र पुरख़ार थी,
बाक़ी है क्या कोई और भी, सानेहा देखते हैं...
बहुत जी लिए, तेरे ग़म का सहारा लेकर ऐ यार,
तक़मील हुई ज़िन्दग़ी, मौत भी आज़मा देखते हैं...
समा पाएगी कैसे, वुसअत-ए-इश्क़ इसमें,
"शौक़" दिल-ए-कमज़र्फ़ की, तंगी-ए-जा देखते हैं...
मनाने के हम पे भी, हुनर निहाँ हैं हज़ारों,
रह जाओगे कैसे, तुम हमसे ख़फ़ा देखते हैं...
क्या उनसे हो दिल्लगी, क्या मोहब्बत हो उनसे,
तिजारत-ए-इश्क़ में जो, पहले ही नफ़ा देखते हैं...।।