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Saurabh Sood

Drama

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Saurabh Sood

Drama

जाने ख़ुदा क्या देखते हैं

जाने ख़ुदा क्या देखते हैं

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दीदा-ए -पुर-हैरत से हम वा देखते हैं,

देखते हैं, जाने ख़ुदा कि क्या देखते हैं...


देखती है अहल-ए-नज़र फ़रेब-ए-दशना-पिन्हाँ,

और हम कूचा-ए-यार की आब-ओ-सबा देखते हैं...


यूँ तो है एक दुआ निकलने को बेताब कब से,

बड़ी हसरत से तुझे हम मग़र बेनवा देखते हैं...


बहुत सुकुंदाद है ज़ख्म तेरे दस्त-ए-ख़ूबाँ का,

ग़फ़लत में भी कभी करिश्मा-ए-दशना देखते हैं...


फुरक़त का जो पैग़ाम, लाया है कारिंद-ए-ख़ुदा आज,

कभी नामाबर ख़ुदा, कभी तेरा नामा देखते हैं...


हम पे है इलज़ाम, बे-ग़ैरत-ओ-हाजत होने का,

देखते हैं नाक़िद, खुद अपना मुवाखज़ा देखते हैं...


जलता पाते हैं जो ग़ौहर मैं क़ाशाना कोई,

दिल-ए-सोग़वार से भी, उठता धुआँ देखते हैं...


देखते हैं रोज़, महफ़िल को अपनी वीराँ होते,

बड़ी मुद्दत से तक़दीर, तेरा तमाशा देखते हैं...


नामा-ए-मलक़-उल-मौत आया तो ये सोचा,

बाकी ज़िन्दगी से अपना, हिसाब क्या देखते हैं...


चाराग़र की सई रायगाँ, बेसबात आब-ए -बक़ा रही,

क्या करती है असर, सनम तेरी दुआ देखते हैं...


हवादिस-ए-जहाँ से, अब तक नज़र पुरख़ार थी,

बाक़ी है क्या कोई और भी, सानेहा देखते हैं...


बहुत जी लिए, तेरे ग़म का सहारा लेकर ऐ यार,

तक़मील हुई ज़िन्दग़ी, मौत भी आज़मा देखते हैं...


समा पाएगी कैसे, वुसअत-ए-इश्क़ इसमें,

"शौक़" दिल-ए-कमज़र्फ़ की, तंगी-ए-जा देखते हैं...


मनाने के हम पे भी, हुनर निहाँ हैं हज़ारों,

रह जाओगे कैसे, तुम हमसे ख़फ़ा देखते हैं...


क्या उनसे हो दिल्लगी, क्या मोहब्बत हो उनसे,

तिजारत-ए-इश्क़ में जो, पहले ही नफ़ा देखते हैं...।।


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