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Kishan Negi

Romance Fantasy

4.5  

Kishan Negi

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ज़ालिम लौट आया फिर से

ज़ालिम लौट आया फिर से

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389


कल जब सांझ ढले

अतीत के अधखुले पन्नों को पलट रही थी 

बैठकर अमुआ के बाग़ में 

आंखों से टिप-टिप अश्रु बहा रही थी

तभी कंधे पर किसी के स्पर्श का अहसास हुआ 

उस नरम स्पर्श से समझ गई थी

कोई गैर नहीं ख़ास अपना ही होगा

पलटकर देखा तो वही जाना पहचाना सा चेहरा 

मुस्कुरा के झांक रहा था मेरे नयनों में

थोड़ा सकुचाई, थोड़ा सकपकाई

थोड़ी-सी हैरानी, थोड़ी-सी परेशानी

फिर ख़ुद को संभालकर लगी सोचने

ज़ालिम लौट आया है एक बार फिर 

ज़ख्मों पर नमक छिड़कने 

सोचा ख़ामोश रहूँ या कुछ सवाल करूं

इससे पहले कि पहल की शुरुआत यहां से होती 

हाथ मेरा थाम कर कहा उसने

भूल जाओ वक़्त जो गुज़र गया

सोच लेना कि वह भी इक लम्हा था

जो चला गया छू कर हमारे प्रेम के धरातल को 

ज्यादा कुछ नहीं बस यही कहना था

चलो हम भी लौट चलें

संजो कर आंखों में कुछ नई अभिलाषाएँ

बिखरी ज़िन्दगी के तिनके बटोर कर

बनाएँ अपना भी एक नया आशियाना



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