क़िस्मत
क़िस्मत
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कहीं किसी रोज़ जो तुम मिल जाते क़िस्मत से एक बार
कितनी अनुनय, कितनी प्रणय कर लेती में एक बार
जी लेती एक ही पल में जीवन हज़ार
मेरी प्रीत सच्ची हे जो कसमें खाई वो पक्की है,
जिस दिन से तुम हो चले गए, हम तो वहीं पर खड़े रहे।
राह निहारूँ तुम्हें पुकारूँ, करूँ ईश्वर से प्रार्थना बारम्बार
कहीं किसी रोज़ जो तुम मिल जाते एक बार
पथ में बिछा देती फूल हज़ार, अनुनय, मनुहार करके मना लेती,
क्षमा सभी भूलो की माँग लेती है, कर देती तुम पर जान निसार
कहीं किसी रोज़ जो तुम मिल जाते क़िस्मत से एक बार।