मेघा
मेघा
फिर से कारी बदरी छाइ हे, घनघोर घटा घिर आई है
थर थर झर झर क़ैसी मनमोहक आवाज़ें हैं
चहु दिशा पक्षियों का कलरव हैं , देखो मयूर भी कैसे नाचें हैं।
ऐसे में मैं कैसे शांत रहूँ, कैसे ना तुम्हें मैं याद करूँ कवर दिया हुआ है
ये घनघोर बरसे थे तब भी, जब बरसो पहले मिले थे हम भी।
मन मेरा रिसता हैं आज भी, जब तेरे चर्चे होते हैं।
बिना तेरे कैसे हम आज भी तनहा अकेले हैं, कारी रातें नाग़िन
सी बन के डँसती हैं, याद तुम्हारी आती हैं तो, ओढ़ लेती हूँ
वही शॉल जिसको तुम रखते थे हरदम अपने पास, तेरी
यादों को बातों को अब भी सीने से लगाए बैठी हूँ, जैसे तूने
मुझे बनाया था वैसी ही बनकर बैठी हूँ ।
वैसी ही बनकर बैठी हूँ ॥