'ऋत प्रीत की'
'ऋत प्रीत की'
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जैसे ही पगरव हुए सावन के,
आसार दिख रहे धरा पर नवजीवन के,
वसुंधरा सज रही धानी चुनर ओढ़,
खिल रहे हैं भाव अन्नदाता के मन के!!
वर्षा जल से तृप्त होकर धरा,
उपजाएगी सोने सा अन्न खरा,
क्षुधा की अग्नि शांत होगी सबकी,
प्रत्येक जीव मुस्कुराएगा जीवन से भरा!!
खिल जाएंगे मदमाते रंगीन कुसुम,
कण कण होगा प्रेम धुन में जैसे गुम,
प्रणय रागिनी बन फुहार बरसेगी अंबर से,
प्रीत की इस ऋतु में आओ एक हो जाएं हम तुम!!