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MUKESH KUMAR

Romance Fantasy

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MUKESH KUMAR

Romance Fantasy

जाज़िब

जाज़िब

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गले में गुलूबंद, आंखों में सुरमा, चेहरे पे हाफ़ नक़ाब 

रचा ढोंग फ़क़त झूठ मूठ का इक़रार करने के लिए।


पुर कशिश, दिलकशी, बे–दिली, बे–हया, अफ़्सुर्दा

तूने मिक़्नातीस बनके मेरे जिस्म के पुर्जे निकाल लिए।


सोख़्ताए है ज़ीस्त की आब-ए-हैवाँ में घुले ज़हर से

मेरे सम्त सियाही–चूस बैठे है दिल को चूसने के लिए।


तुम जाज़िब-ए-नज़र में तड़फा के बद– हैयत निकले

मुझ मिस्कीन के काग़ज़ी ख़्वाब धूमिल करने के लिए।


तुम सीढियां क्या उतरने लगे मेरे दिल से उतरने लगे

इन्हीं छिछलती निगाहों पे हारे थे इश्क़ करने के लिए।


जाज़बियत अमीरी में भी है गरीबों को गिराने के लिए

तुमने जफ़ा के सिवाय वफ़ा कहां की शोहरत के लिए।


तुम अगर कोई फ़ाक़ा-कश लड़की होती समझ पाती

इन लबों से मेरे रुखसार पर हर्फ़ छोड़ जाती मेरे लिए।


ख़ैर छोड़ ये बता आजकल तू ठीक तो है मायूस क्यों

या फिर कोई और सफेद झूठ बोलते हो प्यार के लिए। 


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