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Archana Saxena

Romance

4  

Archana Saxena

Romance

इश़्क

इश़्क

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पहले जो करते थे फर्ज समझ

कब फिक्र के वश वो करने लगे

विवाह को बीते जितने दशक

इक दूजे पे ज्यादा मरने लगे


'सीने में गैस चढ़ जायेगी

जो कटहल इतना खाओगी

खुद भी रात को जागोगी

और मुझको भी तुम जगाओगी'


इस ताने में है कितनी फिक्र

और फिक्र में छुपा है उनका प्यार 

पर वह भी उनकी पत्नी हैं

 ऐसे कैसे मानेंगी हार


'मेरी छोड़ो तुम अपनी कहो

खुद रात रात भर जागते हो

मुझको यदि कोई परेशानी हो

इल्जाम मेरे सर डालते हो


अरे अपनी दवाई ली तुमने ?

याद रोज दिलाना पड़ता है

कब तक मैं अपने हाथ से दूँ

तुम्हें रोज बताना पड़ता है'


इससे सुन्दर क्या होगा इश़्क

हर उम्र में बदले रूप इश्क़

कितना पावन सा रिश्ता है

उलाहनों में भी छुपा है इश़्क।


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