इश्क़- इश्क़
इश्क़- इश्क़
रूठना मनाना, हंसना रूलाना
मोहब्बत की दुनियां का अलग ही नजराना
इश्क़ मुहब्बत परवान चढ़ती,,
हर पल महबूब की राह तकती।
नित प्रयेंत आहें भरती
छोड़ भीड़ भाड़, तन्हाइयां दुढ़ती।
इश्क़ मुहब्बत परवान चढ़ती
हर पल मेहबूब की राह तकती।
मिल के लड़ती, लड़ के याद करती
मांग माफी, दिल्लगी बार-बार करती,
इश्क़ मुहब्बत परवान चढ़ती
हर पल मेहबूब की राह तकती।
देख एक दूजे को शरमा जाती
बिछड़ कर एक दूजे को याद करती,
इश्क़ मुहब्बत परवान चढ़ती
हर पल महबूब की राह तकती।
पकड़ तकिये को रात भर रोती,
पा महबूब को ,गले लगा कंधा भिगोती
इश्क़ मुहब्बत परवान चढ़ती
हर पल महबूब की राह तकती।
हर मुहब्बत एक कहानी रचती,
हर तकलीफ़ से परे, लुभावनी लगत,
भूली बिसरी फिर सारी दुनियां लगती,
इश्क़ मुहब्बत परवान चढ़ती
हर पल महबूब की राह तकती।
इश्क़ मुहब्बत परवान चढ़ती
इश्क़ मुहब्बत परवान चढ़ती।

